कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सवाल उठाया है। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा से खासे नाराज हैं। उन्होंने इसे लेकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है और मांग की है कि प्रधानमंत्री कांग्रेस नेता या किसी अन्य के खिलाफ ऐसे अशोभनीय शब्द और धमकाने वाली भाषा का इस्तेमाल न करें। ऐसी भाषा प्रधानमंत्री पद की गरीमा के खिलाफ है।
Former PM & senior Congress leader Manmohan Singh writes to President of India asking him to caution the PM from using unwarranted , threatening & intimidating language against the leaders of the Congress Party or any other party of person as it does not behove position of the PM pic.twitter.com/4FHM5MPeB1
— ANI (@ANI) May 14, 2018
ये पत्र 13 मई को कांग्रेस पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजा गया था। इस पत्र पर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आलावा कांग्रेस के कईं वरिष्ठ नेताओं के हस्ताक्षर हैं। चिठ्ठी में लिखा गया है कि भारत में इससे पहले जितने भी प्रधानमंत्री हुए सभी ने सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के कार्यक्रमों में अपने पद की गरिमा और मर्यादा का पूरा पालन किया है। लेकिन ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता कि एक लोकतांत्रिक देश के राष्ट्राध्यक्ष होने के नाते कोई प्रधानमंत्री मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेताओं और सदस्यों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से ऐसे शब्दों का प्रयोग करेगा।

अपनी चिट्ठी में मनमोहन सिंह ने कर्नाटक के हुबली में 6 मई को पीएम नरेंद्र के चुनावी भाषण का खास तौर से जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने कहा था , ‘कांग्रेस के नेता कान खोलकर सुन लीजिए, अगर सीमाओं को पार करोगे, तो ये मोदी है, लेने के देने पड़ जाएंगे।’ इस चिठ्ठी में प्रधानमंत्री के भाषण के अंश को धमकी बताते हुए उसे निंदनीय करार दिया गया है और कहा गया है कि ये भाषा प्रधानमंत्री की नहीं है, हम धमकियों से झुकने वाले नहीं है लेकिन पीएम के निजी और सावर्जनिक जीवन में ये भाषा अस्वीकार्य है।

इस पत्र में कहा गया है कि ‘राष्ट्रपति देश का संवैधानिक मुखिया होता है और प्रधानमंत्री व उनकी कैबिनेट को परामर्श देना या मागदर्शन करना राष्ट्रपति का कर्तव्य है। प्रधानमंत्री से इस तरह की भाषा की उम्मीद नहीं की जाती है। चाहे वह चुनाव के समय ही क्यों नहीं बोल रहे हों।’