तिब्बत के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने शुक्रवार को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-बॉम्बे में दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि बौद्ध परंपरा बहुत लिब्रल है और इस धर्म में सभी के लिए समान अधिकार हैं। इतना ही नहीं उन्होने भविष्य में “महिला दलाई लामा” होने की बात भी कही।
दलाई लामा जिनका असली नाम टेनज़िन ग्यातोसो है, उन्हें सन् 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उन्होने तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए काफी मेहनत की है और दुनियाभर में उन्हें काफी सम्मान दिया जाता है। जब उनसे पूछा गया कि क्या भविष्य में कोई महिला दलाई लामा हो सकती है, तो उन्होंने कहा कि बुद्ध धर्म ने दोनों लिंगों को बराबर अधिकार दिए हैं।
उन्होने इस बात पर भी जोर दिया कि बचपन में बच्चों की भावनात्मक शिक्षा को ज्यादा महत्व देना चाहिए क्योंकि यदि हम उन्हें भविष्य में स्वस्थ और खुश देखना चाहते हैं तो उसके लिए उनका मन शांत होना अाव्श्यक है। जिस तरह शारीरिक स्वच्छता शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करती है उसी तरह स्वस्थ मन भी महत्वपूर्ण है। भारत में, दिमाग और भावनाओं के बारे में ज्ञान 3,000 साल से अधिक पुराना है। दलाई लामा ने कहा कि अन्य देश भगवान की अवधारणा को स्वीकार करते़ केवल प्रार्थना करते हैं, जबकि भारत ने मानसिक शांति के लिए अनेक तकनीक भी विकसित की हैं।
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तिब्बत के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने शुक्रवार को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-बॉम्बे में दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा कि बौद्ध परंपरा बहुत लिब्रल है और इस धर्म में सभी के लिए समान अधिकार हैं। इतना ही नहीं उन्होने भविष्य में “महिला दलाई लामा” होने की बात भी कही।दलाई लामा जिनका असली नाम टेनज़िन ग्यातोसो है, उन्हें सन् 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उन्होने तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए काफी मेहनत की है और दुनियाभर में उन्हें काफी सम्मान दिया जाता है। जब उनसे पूछा गया कि क्या भविष्य में कोई महिला दलाई लामा हो सकती है, तो उन्होंने कहा कि बुद्ध धर्म ने दोनों लिंगों को बराबर अधिकार दिए हैं।उन्होने इस बात पर भी जोर दिया कि बचपन में बच्चों की भावनात्मक शिक्षा को ज्यादा महत्व देना चाहिए क्योंकि यदि हम उन्हें भविष्य में स्वस्थ और खुश देखना चाहते हैं तो उसके लिए उनका मन शांत होना अाव्श्यक है। जिस तरह शारीरिक स्वच्छता शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करती है उसी तरह स्वस्थ मन भी महत्वपूर्ण है। भारत में, दिमाग और भावनाओं के बारे में ज्ञान 3,000 साल से अधिक पुराना है। दलाई लामा ने कहा कि अन्य देश भगवान की अवधारणा को स्वीकार करते़ केवल प्रार्थना करते हैं, जबकि भारत ने मानसिक शांति के लिए अनेक तकनीक भी विकसित की हैं।अगर हम भविष्य को सुख और शांति में देखना चाहते हैं तो भावनात्मक शिक्षा आवश्यक है। उन्होंने य़ह भी कहा कि 20 वीं शताब्दी में बहुत अधिक हिंसा और पीड़ा थी। 21 वीं शताब्दी को उसे दोहराना नहीं चाहिए और मानव बुद्धि को विकसित करने के साथ-साथ हमें अपनी भावनाओं को भी विकसित करना चाहिए। हमारा दिल भी साफ और प्यार से भरा होना चाहिए। इसी के लिए भारत ने विपासना जैसी तकनीके विकसित की थी।