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Dastak India > Home > विचार > लोग तो पूछेंगे ही, चुनाव ही क्यों करवा रहे हो?
विचार

लोग तो पूछेंगे ही, चुनाव ही क्यों करवा रहे हो?

dastak
Last updated: May 14, 2019 4:01 pm
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voting in india
Photo Source- Google
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अजय चौधरी

ajay chaudhary
Photo- Ajay Chaudhary

छठे चरण की वोटिंग के बाद चुनाव आयोग ने ट्वीटर पर छोटा सा पोल किया और वोट न डालने वालों से पूछा कि आपने वोट क्यों नहीं डाली? 1920 लोगों ने इस पोल में हिस्सा लिया इनमें से 14 फीसदी लोगों ने कहा कि हम वोटर लिस्ट में नाम न होने की वजह से वोट नहीं डाल पाए। 12 फीसदी ने कहा कि उम्मीदवार उनकी पंसद का नहीं था। आंकडे बेहद छोटे से हैं लेकिन बेहद चौंकाने वाले हैं।

चुनाव आयोग ने एक और सवाल पोल के माध्यम से पूछा कि क्या आपने मतदान किया? 36 फीसदी ने कहा कि उन्होंने मतदान किया लेकिन 41 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने पिछले चरण में किया था। ये दो सवाल और इनके जवाब ही काफी हैं ये जानने के लिए कि लोगों का मतदान की इस व्यवस्था से भरोसा उठने लगा है और वो चुनाव में खडे उम्मीदवारों में से किसी को चुनना नहीं चाहते।

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लोग किसी को चुनना नहीं चाहते इसलिए वो वोट डालने नहीं निकलते और जो चुनना चाहते हैं उनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं होता। ये दोनों ही अलग अलग तरह की स्थिति हैं लोकतंत्र के लोकतंत्र के महापर्व की। आजतक कोई समझ नहीं पाया है कि वोटर लिस्ट में से एक इलाके के हजारों नाम एक साथ कैसे कट जाते हैं? इनमें से अधिकतर वोट सत्ताविरोधी होती हैं। लेकिन इससे ज्यादा चिंता का विषय लोगों का इस सिस्टम से विश्वास उठ जाना है।

चिंता सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती। जिनकी वोट कटनी थी वो तो कट गई लेकिन जो घर से बहार नहीं निकला वोट तो उसकी भी डल गई। वो कहता रहे कि उसे खड़े उम्मीदवारों में से कोई भी पसंद नहीं इसलिए वोट नहीं डालनी। लेकिन उसके अधिकार का प्रयोग कोई दूसरा नहीं कर रहा इस बात की क्या गारंटी है? बहुत से मामले तो ऐसे भी पाए गए कि वोट डालने गए लोगों को बूथ के भीतर जाकर पता चला है कि उनकी वोट तो पहले ही डल गई। जब उन्होंने वोट नहीं डाली तो वो कौनसी अदृश्य ताकतें हैं जो उसकी वोट डाल आई?

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मैं छठे चरण की वोटिंग पर इस बार करीब से नजर बनाए हुआ था। बहुत से विधानसभा क्षेत्रों का मतदान प्रतिशत छह बजे तक 40 प्रतिशत के आस-पास था उनका मतप्रतिशत गेट बंद होने के बाद के दो घंटों में 60 प्रतिशत पार कर गया। हो सकता है चुनाव आयोग कि काउंटिग धीरे से चल रही हो लेकिन ये सिस्टम भरोसे लायक बचा है या नहीं ये कहा नहीं जा सकता। समस्या से दूर भाग जाने से उसका हल नहीं निकलता ,इसलिए हमें इस सिस्टम से लडाई सिस्टम में रहकर ही लड़नी होगी, बहार निकलकर नहीं।

जिन्हें उम्मदीवार पसंद नहीं है वो अगर अपने मताधिकारों का प्रयोग करते और नोटा ही दबा आते तो उनके नाम से कोई फर्जी वोटिंग तो न करता और नपंसद उम्मीदवारों का चुनाव जीतना आसान तो न होता। फर्जी वोटिंग सबसे ज्यादा उन्हीं वोटों की होती है जो चुनाव में हिस्सा नहीं लेते। गांवों में तो अंदाजा लगा लिया है कि शहर में रहने वाले फलाने के वोट डालने नहीं आए। उनकी पर्ची बचाकर रखी जाती है और बाद में आपसी सहमति से प्रयोग में लाई जाती है और बूथ पर 70 से 80 प्रतिशत के बीच मतदान कर दिया जाता है। ईवीएम टेमपरिंग के आरोपों से इतर फर्जी वोटिंग भी बड़ा मुद्दा होना चाहिए।

जहां आपसी सहमति नहीं होती वहां ऐसा होता है जैसा हरियाणा के फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र के गांव असावटी में हुआ। वहां भाजपा के एजेंट की ग्रामीण महिलाओं की फर्जी वोट डालने की वीडियो वायरल हुई। इस ऐजेंट ने खुलेआम बार बार ईवीएम का बटन दबाया। हैरानी की बात ये थी कि वहां बैठे चुनाव अधिकारी बडी ही समझदारी से ऐजेंट की इस हरकत को नजरअंदाज करते रहे। ये तो एक जगह का मामला है जहां कि वीडियो सामने आ गई और कार्यवाही हो गई। वायरल वीडियो के आधार पर पुलिस ने ऐजेंट की गिरफ्तारी तो कर ली लेकिन पेशी से पहले ही उसकी जमानत भी हो गई। मीडिया से बातचीत में ऐजेंट ने खुद को राष्ट्रवादी बताया है।

जिन बूथों की वीडियो सामने नहीं आती वहां आपसी सहमति से क्या क्या होता होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। फिर कैसे कोई इस सिस्टम पर भरोसा करे? और सिर्फ ईवीएम को ही मुद्दा क्यों बनाया जाए? अब लोग तो पूछेंगे ही चुनाव कराने की जरुरत क्या है? जब वोट खुद ही डालनी है? और साक्षी महाराज ने कहा ही है कि 2023 में चुनाव कराने की जरुरत नहीं पडेगी।

“ये लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में सभी सूचनाएं लेखक द्वारा दी गई हैं, जिन्हें ज्यों की त्यों प्रस्तुत किया गया हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति दस्तक इंडिया उत्तरदायी नहीं है।”

TAGGED:election commissionevm temperingfarji votingnotaचुनाव आयोगनोटा'फर्जी वोटिंगमतदातावोटर जागरुकता
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