उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में इस बार जहां शामली सीट को जीतना भारतीय जनता पार्टी के लिए आन बचाने का विषय बन गया है वहीं जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के लिए ये सीट अपना क्षेत्र बचाने का विषय बनी हुई है। चुनावों की तारीखों का ऐलान हो चुका है और रलोद से प्रसन्न चौधरी को इस सीट पर टिकट मिलना लगभग तय माना जा रहा है। वहीं भाजपा से मौजूदा विधायक तेजेंद्र निर्वाल को ही फिर से मैदान में उतारा जाएगा ये भी लगभग तय ही है।
राष्ट्रीय लोकद से प्रसन्न का ही टिकट क्यों माना जा रहा है फाईनल-
शामली सीट लोकदल के लिए बेहद खास है, किसान आंदोलन के बाद बदले हालातों में इलाके में लोकदल की स्वीकार्यता बढ़ी है। ऐसे में विभिन्न नेताओं ने इस चुनाव से पहले लोकदल का दामन थाम लिया और टिकट के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करने लगे। राजनीतिक से जुडे लोगों का कहना है कि पूर्व विधायक पंकज मलिक ने भी इस सीट से लोकदल से चुनाव लड़ना चाहा लेकिन उन्होंने इसकी इच्छा काफी देर से जाहिर की और उनसे पहले ही टिकट मिलने के भरोसे के साथ कई बड़े नेता पार्टी से जुड़ चुके थे, उन्हीं में से एक थे भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रसन्न चौधरी।
प्रसन्न चौधरी ने बीते साल जून 2021 में रलोद का दामन थामा है, लेकिन इलाके में वे पांच वर्ष तक जिला पंचायत अध्यक्ष पति और एक मजबूत चहेरा भी रहे हैं। वहीं कहा जा रहा है कि रलोद से पूर्व विधायक राजेशवर बंसल अपने पुत्र के लिए टिकट मांग रहे हैं, लेकिन सुत्रों के अनुसार शामली सीट पर जाट और मुस्लमानों के समीकरण को देखते हुए बंसल की टिकट कटनी तय है क्योंकि इससे पार्टी को वोटों का घाटा हो सकता है। इसलिए पार्टी के लिए धनबल और वोट बल दोनों से सबसे मजबूत जाट चेहरा प्रसन्न चौधरी का ही दिख रहा है।
सुत्रों की मानें तो जंयत चौधरी ने खुद फोन करके इलाके के पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और प्रसन्न चौधरी को टिकट फाईनल होने की जानकारी दी है। बताया जा रहा है कि जयंत ने ये फोन कॉल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से सीटों के बंटवारे को लेकर हुई मीटिंग के बाद की है। जयंत ने कहा है कि आप टिकट के लिए अब चक्कर न काटे वो तय हो चुका है बस आप क्षेत्र में जी जान से चुनाव तैयारियों के लेकर जुट जाएं। इसके बाद से ही समर्थकों में एक दूसरे को फोन कॉल कर टिकट फाइनल होने की जानकारी दी जा रही है और इलाके में ये खबर आग की तरह फैल रही है।
कौन है प्रसन्न चौधरी-
प्रसन्न चौधरी मूल रूप से शामली जनपद के गांव कासमपुर के ही निवासी हैं लेकिन वे इससे पहले हरियाणा के फरीदाबाद में अपने भाईयों के साथ मिलकर बिजनेस संभाला करते थे, उनका बाकी परिवार अब भी फरीदाबाद ही रहता है। फिलहाल उनकी शामली में भी कुछ फैक्ट्रियां हैं। 2016 में इन्होंने अपने राजनैतिक करियर की शुरुआत बसपा से की और जिला पंचायत चुनाव में अपनी किस्मत आजमानी चाही। लेकिन उस वर्ष जिलापंचायत सीट महिला के लिए घोषित कर दी गई इसलिए वे खुद चुनाव न लड़ सके और उन्होंने इसके लिए अपनी पत्नी संतोष देवी को आगे किया। संतोष देवी ने बसपा से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़कर जीत हासिल की और बाद में उन्हें अन्य सदस्यों ने वोटिंग के जरिए शामली जिला पंचायत अध्यक्षा चुन लिया। संतोष देवी ने पांच वोट से जीत हासिल की। उन्हें 12 वोट मिले, जबकि विपक्षी सपा प्रत्याशी शैफाली चौहान को सिर्फ 7 वोट मिल सके।
इसके बाद प्रसन्न चौधरी शामली की सक्रिय राजनीति में जोरशोर से शामिल हो गए, उन्होंने समय का भाव समझा और भाजपा का दामन थाम लिया और जिला पंचायत अध्यक्ष पति के रुप में भाजपा में रहकर इलाके में बहुत से विकास कार्य कराए। लेकिन किसान आंदोलन के चलते जिले में भाजपा का विरोध शुरु हो गया किसान भाजपा नेताओं के गांवों में आने पर विरोध दर्ज कराने लगे, प्रसन्न चौधरी भी क्षेत्र के किसानों की बातों को भाजपा में रहते जायज ठहराने लगे और आखिरकार उन्होंने भाजपा को झटका देते हुए 19 जून को जयंत चौधरी से मुलाकात कर राष्ट्रीय लोकदल का दामन थाम लिया। तब से वे क्षेत्र में लोकदल के प्रचार में सबसे अधिक जी जान से जुटे हुए दिख रहे हैं।
शामली सीट के वोटरों का क्या है रुझान-
बीजेपी की लहर में पिछली बार शामली सीट से भाजपा नेता तेजेंद्र निर्वाल ने जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार किसान आंदोलन के बाद जिले के हालात बदले हुए हैं, बहुत से चीनी मिलों पर अब भी किसानों की गन्ना पेमेंट बकाया है। वहीं सपा और रलोद इस सीट पर संयुक्त रुप से चुनाव लड़ रही है, ऐसे में सपा के माध्यम से मुस्लिम वोट रलोद प्रत्याशी को मिल जाएंगे ये माना जा रहा है। जाट वोट बैंक भी रलोद के खाते में जाएगा ये कयास भी हैं लेकिन ये एकतरफा नहीं होगा क्योंकि बहुत से जाटों में योगी के काम को लेकर भी आस्था है। वे किसानों के मुद्दे पर तो खफा हैं लेकिन सड़कों से लेकर कानून व्यवस्था तक वे बीजेपी से प्रसन्न हैं। वहीं शामली शहर के व्यापारी वर्ग का रुझान भी बीजेपी की तरफ देखने को मिल रहा है। वहीं दलित अभी खामोश हैं लेकिन माना जा रहा है कि उनका वोट बसपा के खाते में ही जाएगा।
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