फरीदाबाद के डी.ए.वी. शताब्दी महाविद्यालय में ‘रंगशाला: जीवन की पाठशाला’ विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्य अतिथि व् वक्ता के रूप में महाविद्यालय के पूर्व छात्र एवं वर्तमान में एन. एस. डी. वाराणसी के डायरेक्टर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पुरस्कार से सम्मानित रामजी बाली ने शिरकत की। बाली ना केवल एक कुशल रंगमंच कर्मी रहे हैं बल्कि भारतीय सिनेमा की पान सिंह तोमर, कमांडो आदि फिल्मों में यादगार सह-कलाकार की भूमिका निभा चुके हैं।डीएवी के एलुमिनी सीरीज के तहत आयोजित इस सेमिनार का उद्देश्य छात्रों को एक रंगमंच कर्मी के नजरिये से जीवन का किस तरह अवलोकन करना चाहिए, बताना रहा।
महाविद्यालय के मंच पर आते ही रामजी बाली भावुक हो गए और उन्होंने कहा कि मायका क्या होता है, एक पुरुष होने के नाते, आज मुझे महाविद्यालय आने पर समझ में आया। उन्होंने महाविद्यालय में शिक्षण के दौरान हुए व् रंगमंच अभ्यास से जुड़े अनुभवों को छात्रों से सांझा किया। उन्होंने कहा कि ये कला ही है जो हमें जानवर से अलग करती है, सभी प्राणियों की मुख्य क्रियाएं एक जैसी ही होती हैं, परन्तु मनुष्य विचार करता है और विचार से ही कला का जन्म होता है। उत्तर भारतीय छात्रों को कला के बारे में कम ही ज्ञान होता है जबकि दक्षिण व् उत्तर पूर्वी भारतीय छात्र चाहे कोई भी व्यावसायिक शिक्षण ले रहे हों, परन्तु उनको अपनी कला की सम्पूर्ण जानकारी होती है। इसका कारण दक्षिण व् उत्तर पूर्वी परिवारों व् शिक्षण संस्थानों द्वारा कला को संजो कर रखा जाना रहा है, जहाँ बचपन से ही छात्रों को विभिन्न कलाओं को अभिन्न अनुसाशनिक क्रिया के रूप में सिखाया जाता है।
जो भी कला आप सीखते हैं उसका असर आप के सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है और ये सब मुझे भारत भ्रमण के लम्बे प्रवासों के दौरान पता चला है। उन लोगों के लिए ये केवल एक सांस्कृतिक कला ही नहीं है बल्कि जीवन का एक अहम् हिस्सा है, अध्यात्म का एक रूप है। नाटक जीवन का ही एक प्रतिबिम्ब है, कोई भी ऐसी कला नहीं है जो नाटक मैं नहीं है। कलाएं कहीं से आई नहीं हैं, जीवन है तो कला है। जीवन है तो लोक व्यवहार है और लोक व्यवहार से कला उत्पन्न होती है। ये कला हमारे जीवन का हिस्सा बनती है, हमें सीखाने के लिए अगर किसी भी विषय को समझना है तो उसका गहन अवलोकन बहुत जरूरी है, जो आज के समय में हम लोग नहीं करते।
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एक छोटी सी इंटरएक्टिव एक्सरसाइज के माध्यम से उन्होंने अपनी बात को छात्रों व् शिक्षकों को समझाया। उन्होंने रश्मिवती पुस्तिका के एक काव्य जिसमें श्री कृष्ण के शांतिदूत बनकर जाने व् दुर्योधन द्वारा उन्हें बंदी बनाने के प्रयास का प्रसंग वर्णित है, का वाचन करके अपने संबोधन को पूर्ण किया। रंगमंच को लेकर उपस्थित छात्रों के सवालों का सही जवाब देकर भी राम जी बाली उनकी उत्कण्ठा को शांत किया।
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