22 नवंबर, 2022, मंगलवार को केंद्र ने उच्च न्यायालय को बताते हुए कहा कि उन्होंने राज्य स्तर पर सभी राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों तथा अन्य हित धारकों के साथ अल्पसंख्यकों की पहचान के मुद्दे पर परामर्श करने के लिए बैठकें की है। जिसके परिणाम स्वरूप अभी तक केवल 14 राज्यों ने ही अपने विचार हमारे समक्ष प्रस्तुत किए हैं। अभी 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की तरफ से कोई भी टिप्पणी प्राप्त नहीं हुई है। चूंकि यह मामला संवेदनशील है और इस मुद्दे पर जल्दबाजी में लिया कोई भी फैसला उचित नहीं होगा, इसलिए अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने विचारों को अंतिम रूप देने के लिए कुछ और समय दिया जाना चाहिए। जिस पर स्वीकृति देते हुए न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने केंद्र को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए छह सप्ताह की समय सीमा दी है।
शीर्ष अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। जिसमें राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। जिसमें दलील के तौर पर दस राज्यों में हिंदुओं की पहचान अल्पसंख्यकों में की गई है। उपाध्याय ने सुनवाई के दौरान पीठ को बताया कि उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग अधिनियम, 2004 की धारा 2 की वैधता को चुनौती दी है। केंद्र को भारत में अल्पसंख्यक समुदायों की पहचान करने और उन्हें अधिसूचित करने का अधिकार देने वाली अधिनियम की धारा 2 को पूर्ण रूप से मनमाना, तर्क हीन व अपमानजनक करार देते हुए उनकी याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि यह केंद्र को निरंकुश शक्ति देता है। शीर्ष अदालत ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट का अवलोकन किया। जिसमें कहा गया है कि कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अल्पसंख्यक मुद्दे पर टिप्पणी देने से पहले सभी हित धारकों के साथ विचार -विमर्श करने के लिए अतिरिक्त समय प्रदान करने का अनुरोध किया है। रिपोर्ट के अनुसार 14 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने विचार दे दिए हैं।
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केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा है कि मंत्रालय ने 31 अक्टूबर को एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल की है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि ऐसे मामलों पर सावधानीपूर्वक गौर करने की आवश्यकता है। उपाध्याय ने 2007 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया जो कि उस याचिका पर दिया गया था। जिसमें उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा मई 2004 के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। यूपी राज्य ने उस आदेश में 67 मदरसों को अनुदान सहायता प्रदान करने की मान्यता दी थी। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के 2007 के फैसले को चुनौती नहीं दी गई है। पीठ ने शेष 19 राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को शीर्ष अदालत के आदेश प्राप्ति के चार सप्ताह के अंतराल में ही केंद्र को अपना पक्ष बताने के लिए कहा। उन्होंने अभी तक इस मुद्दे पर अपनी टिप्पणी नहीं दी है। अब इस मामले की सुनवाई जनवरी में करना निर्धारित किया गया है।
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अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि केंद्र ने सभी राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों , शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग सहित अन्य हितधारकों के साथ बैठक की है। सभी से अनुरोध किया गया था कि मामले की गंभीरता को देखते हुए हितधारकों के साथ शीघ्रता से जुड़े। ताकि सभी राज्य सरकारों के विचारों को अंतिम रूप देने का सुनिश्चित किया जा सके। चूंकि इस मामले में अभी तक सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के विचार प्राप्त नहीं हुए हैं इसलिए उच्च न्यायालय द्वारा केंद्र को 6 सप्ताह का समय दिया गया है। ताकि जल्द- से- जल्द इस मामले में राज्य सरकार के विचारों को अदालत के समक्ष रखा जा सके।