भारत में हर साल कई लाख छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेशों की तरफ रुख करते हैं। उन्हें
पढ़ाई के साथ-साथ एक अच्छे रोजगार की भी तलाश होती है पर अब भारत में पढ़ रहे छात्रों के लिए यूजीसी (UGC) ने यह कदम उठाया है, कि अब विदेशी शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत के छात्रों को विदेश जाने की जरूरत नहीं है। अब वह भारत में रहकर भी अंतरराष्ट्रीय शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। यूजीसी चेयरमैन एम. जगदीश कुमार ने विदेशी यूनिवर्सिटी के लिए एक ड्राफ्ट के जरिए आवश्यक दिशा निर्देश लागू किए हैं।
पर क्या आपको लगता है कि भारत में विदेशी यूनिवर्सिटी स्थापित करने की जरूरत थी? क्या इससे भारत के शैक्षिक ढांचे पर असर पड़ेगा? इससे अन्य बच्चों के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा? इस बारे में दस्तक इंडिया ने प्रोफेसर एसपी फोगाट से बात की।
क्या कहा प्रोफेसर एसपी फोगाट ने?
फोगाट जी ने कहा, कि ऐसा पहली बार नहीं है कि विदेशी यूनिवर्सिटी को भारत में लाने की बात की गई हो। इसके पहले भी सरकार द्वारा 1991 में जब मनमोहन सिंह भारत के वित्त मंत्री थे, तब उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण के अंतर्गत विदेशी शिक्षा को लाने का प्रस्ताव रखा गया था लेकिन वह सफल नहीं हुआ था। इसके अलावा 1996 और 2006 में भी यूपीए सरकार के द्वारा इसका प्रस्ताव रखा गया था लेकिन यह तब भी पास नहीं हुआ था। लेकिन अब सरकार की विदेशी कैंपस को भारत में लाने के पीछे क्या मंशा है, यह सरकार जाने? लेकिन मैं इस प्रस्ताव से सहमत नहीं हूं। उन्होंने कहा कि इनके आने से भारत में शिक्षा को अलग-अलग स्तर में बांट दिया जाएगा। जिस तरह प्राइवेट स्कूल और विश्वविद्यालय के आने से गवर्नमेंट संस्थानों पर फर्क पड़ा है क्योंकि आज हर कोई प्राइवेट और नामी शिक्षण संस्थानों से शिक्षा लेना चाहता है।
उसी तरह विदेशी कैंपस आने से भारतीय संस्थानों पर भी असर पड़ेगा क्योंकि जो छात्र आर्थिक रूप से सक्षम है वह तो फिर भी विदेशों में ही जाकर पढ़ेंगे ऐसे में इनका क्याा होगा। दूसरी बात यह है, कि यह बच्चों को किस मीडियम/ भाषा में पढ़ाएंगे? तो आपको बता दूं, कि अमित शाह जी कहते हैं, कि भारत में मेडिकल की पढ़ाई भी हिंदी में होनी चाहिए लेकिन आज हर क्षेत्र में अंग्रेजी का बोलबाला है तो लोग हिंदी माध्यम की तरफ क्यों जाएंगे? फोगाट जी ने कहा, कि आज भारत के केंद्र विश्वविद्यालय में 20 प्रतिशत प्राध्यापक भी नहीं है, अधिकतर विश्वविद्यालय में एक्सटेंशन लेक्चरर लगे है ऐसे में भारत का शिक्षण स्तर कैसे बढ़ सकता है।
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आज भारत से हर साल लाखों युवा विदेशों में जाकर पढ़ाई करते हैं, वह क्यों जाते हैं? सरकार इस बारे में क्यों नहीं सोचती अगर उन छात्रों को यहां भारत में रहकर ही भारतीय विश्वविद्यालय में वह सुविधाएं दी जाए, शिक्षा का वह स्तर दिया जाए, जिसकी उन्हें जरूरत है तो वह विदेशों में क्यों जाएंगे। दूसरा अगर रोजगार की बात करें, तो यहां रहकर कोई छात्र चाहे कितनी भी उच्च डिग्री प्राप्त कर लेे लेकिन उसे फिर भी रोजगार नहीं मिलता है। ऐसे में वह क्या करेगा? इसलिए अधिकतर युवा विदेशों की तरफ रुख करते है। आज देश में पढ़े लिखे बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है, जिसकी तरफ सरकार का ध्यान नहीं है। लेकिन अगर भारत में रहकर ही बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ अच्छा रोजगार भी मिले तो छात्र विदेश क्यों जाएंगे? उन्होंने कहा कि भारत में विदेशी कैंपस स्थापित करने से शिक्षा में एक स्टैंडर्ड का बोलबाला होगा, जो नहीं होना चाहिए क्योंकि इनमें सिर्फ वही छात्र पड़ सकता है जो आर्थिक रूप से सक्षम हो।
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इनमें कोई गरीब व मध्यम वर्ग का बच्चा तो पढ़ाई नहीं कर सकता इसलिए इनके आने से देश में शिक्षा अलग-अलग स्तर में बट जाएगी। फोगाट जी ने कहा, कि शिक्षा के क्षेत्र में राजनीति को नहीं लाना चाहिए, आज से 50 साल पहले जिस तरह से यूनिवर्सिटी स्वतंत्र रूप से काम करती थी उन्हें वैसी ही स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। भारत के बच्चों में प्रतिभा की कमी नहीं है, वह हर क्षेत्र में आगे निकल सकते हैं बस यहां कमी है तो उचित अवसरों की, जो उन्हें नहीं मिलते है। उन्होंने कहा, कि India can grow anywhere. इसलिए चाहे सरकार को भारत में विदेशी कैंपस का स्वागत करना चाहिए लेकिन भारतीय यूनिवर्सिटी के तरफ भी ध्यान देना चाहिए। उनमें शिक्षा के स्तर के साथ- साथ रोजगार के अवसरों को बढ़ाने के बारे में भी विचार करना चाहिए ताकि देश का हर बच्चा शैक्षिक रूप से सामान हो। प्रोफेसर फोगाट जी के अनुसार, शिक्षा को कम या ऊंचे स्तर में नहीं बांटना चाहिए। शिक्षा का सभी को समान अधिकार होना चाहिए।