One Nation, One Election: हाल ही में सरकार ने ‘एक राष्ट्रीय, एक चुनाव’ को लेकर अहम कदम उठाए हैं। जिसके लिए एक समिति का गठन किया गया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि आखिर एक देश एक चुनाव क्या है? और इसके क्या फायदे हैं। दरअसल एक देश एक चुनाव एक प्रस्ताव है जिसमें लोकसभा सांसद और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। इसका मतलब होता है कि एक चुनाव पूरे देश में एक ही चरण में होंगे। मौजूदा समय में 5 साल बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए तीन से पांच साल में चुनाव होते हैं।
खर्च कम-
एक राष्ट्रीय एक चुनाव के समर्थन में तर्क दिया जाता है कि इससे चुनाव पर होने वाला खर्च कम हो जाएगा। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव में 60,000 करोड रुपए खर्च किए गए थे। इस राशि में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों द्वारा खर्च की गई राशि और चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कराने में खर्च की गई राशि शामिल है। वहीं 1951-52 में विधानसभा सभा चुनाव में 11 करोड रुपए का खर्च किया गए थे। इस संबंध में लॉ कमीशन का कहना है कि अगर 2019 में लोकसभा विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो 4500 करोड़ रुपए का खर्च बढ़ेगा। यह खर्च एवं की खरीद पर होगा। लेकिन 2024 में साथ चुनाव कराने पर 1,751 करोड़ का खर्च बढ़ेगा। इस तरह धीरे-धीरे यह अतिरिक्त खर्च कम होता जाएगा।
प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता-
इसके अलावा एक साथ चुनाव कराने के समर्थन के लिए यह तर्क दिया जाता है कि इससे पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता बढ़ेगी। इस संबंध में यह भी कहा गया है कि अलग-अलग मतदान के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था की गति काफी धीमी हो जाती है। सामान्य प्रशासनिक कर्तव्य चुनाव से प्रभावित होते हैं। क्योंकि अधिकारी मतदान कर्तव्यों में संलग्न होते हैं। इसके समर्थन में यह भी कहा जाता है कि इससे केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतर बनी रहने में मदद मिलेगी। वर्तमान में जब भी चुनाव होने वाले होते हैं तो आचार संहिता लागू की जाती है। जिससे उसे अवधि के दौरान लोक कल्याण के लिए नई परियोजना के शुरू पर प्रतिबंध लगाया जाता है। पीएम मोदी यह भी कह चुके हैं कि एक देश एक चुनाव से देश के संसाधनों की भी बचत होगी। इसके साथ ही विकास की गति भी धीमी नहीं होगी।
संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता-
लेकिन एक साथ चुनाव कराने में काफी चुनौतियां हैं। इसके अलावा इसके लिए राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को लोकसभा के साथ जोड़ने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी। इसके अलावा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ अन्य संसदीय प्रक्रिया में भी संशोधित करने की जरूरत होगी। एक साथ चुनाव कराने को लेकर क्षेत्रीय दलों का प्रमुख डर यह भी है कि वह अपने स्थानीय मुद्दों को मजबूती से नहीं उठा पाएंगे। क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र में है इसके साथ ही वह चुनाव खर्च और चुनाव रणनीति के मामले में राष्ट्रीय दल के साथ प्रतिस्पर्धा करने में भी असमर्थ होंगे।
मतदान एक ही पार्टी को चुनेंगे-
साल 2015 में आईडीएफसी संस्थान की ओर से की गई स्टडी में यह पाया गया था कि लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ होते हैं तो 70% संभावना है कि मतदाता एक ही राजनीतिक दल या संगठन को चुनेंगे। हालांकि अगर चुनाव 6 महीने के अंतराल में किए जाएं तो सिर्फ 61% मतदान एक ही पार्टी को चुनेंगे। देश के संघवाद के लिए एक साथ चुनाव से उत्पन्न चुनौतियों की भी आशंका है।
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कमेटी का मकसद-
वन नेशन वन इलेक्शन कमेटी का मकसद यह है कि वह दलों नेताओं के साथ आम लोगों से सलाह मशवरा करेगी। उनकी राय लेगी उसके बाद एक ड्रॉप तैयार किया जाएगा और सरकार कानून बनाने के लिए आगे बढ़ेगी, संसद में बिल लेकर आएगी। वन नेशन वन इलेक्शन पर कमेटी के गठन के बाद इस पर नोटिफिकेशन जारी कर दिया जाएगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित कमेटी के इस नोटिफिकेशन में वन इलेक्शन वन इलेक्शन की शर्तों और नियत का जिक्र होगा।
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