देव उत्थान एकादशी दिवाली के 11 दिन बाद आती है और 15वें दिन देव दीपावली मनाई जाती हैं। भारत में देव उत्थान एकादशी कई तरह से मनाई जाती है हर साल कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को देव उठनी एकादशी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है इस पर्व के दौरान लक्ष्मी और नारायण की पूजा अर्चना की जाती है और सभी देवगणों को जगाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन श्री हरि विष्णु अपनी चार माह की नींद से जागते हैं और इस दिन से सभी मांगलिक कार्य होने शुरू हो जाते हैं। इसी दिन तुलसी माता का शालिग्राम से विवाह कराया जाता है। वहीं कुछ घरों में चावल और आटे की चौके पर गाने के मंडप बनाकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती हैं इस दिन तुलसी के पौधे का दान देना बहुत ही शुभ माना जाता है।
देवों को ऐसे उठाएं-
देव उठनी के दिन भारत के कई इलाकों में पूजा स्थल के पास गेरू से गाय भैंसों के पैर, कॉपी किताब, देवी-देवता और फूल पत्तीयां आदि बनाए जाते हैं। इसके साथ ही इस दिन भगवान विष्णु की तस्वीर दीवार पर बनाई जाती हैं फिर उनके सामने थाली या सूप बजाकर और गीत गाकर देवों को जगाया जाता है। ऐसे करने के पीछे यह मानता है कि इससे घर में सुख शांति बनी रहती हैं और आपके सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं साथ ही उस घर में देव उठनी के बाद शादी-विवाह जैसे शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
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देव दीपावली –
सनातन धर्म में दिवाली का बहुत महत्व होता है दिवाली दीपो का त्यौहार पावन है वहीं कार्तिक माह की पूर्णिमा को हर साल देव दीपावली मनाई जाती हैं। यह पावन त्यौहार हर साल दिवाली से ठीक 15 दिन बाद बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। देव दीपावली काशी में गंगा नदी के तट पर मुख्य रूप से मनाया जाती हैं। देव दीपावली को लेकर ऐसे मान्यता है कि देव दीपावली के दिन देवता काशी के पवित्र भूमि पर स्वयं उतरते हैं। साथ इस दीपावली को लेकर यह कथा भी प्रचलित है कि कार्तिक माह की पूर्णिमा को भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था। फिर सभी देवताओं ने त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्त होने की खुशी में काशी में खूब सारे दीप जलाकर खुशियां मनाई थी। जिसके बाद से ही हर साल कार्तिक पूर्णिमा और दिवाली की ठीक 15 दिन बाद देव दीपावली धूमधाम से मनाई जाती हैं।
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