मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम को लागू कर दिया है। इस कानून के लागू होने के बाद से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होने वाले अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता मिल पाएगी। सिख, बौद्ध, हिंदू, जैन पारसी और ईसाई समुदाय शरणार्थी नागरिक के लिए अप्लाई कर पाएंगे। नए नियमों के मुताबिक मुसलमान को इसमें शामिल नहीं किया गया है। लेकिन आखिर ऐसा क्यों हुआ है इसकी वजह क्या है और क्यों सरकार ने सिर्फ 6 समुदायों को ही इसमें जगह दी है। आईए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-
मुसलमानों को क्यों शामिल नहीं किया-
इस कानून में मुसलमानों को शामिल नहीं किए जाने पर विपक्षी दलों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है और इसे मुस्लिम विरोधी भी बताया जा रहा है। इसके साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि इसमें मुसलमानों को क्यों शामिल नहीं किया गया। दरअसल नए नियमों में उन लोगों को जगह दी जाएगी, जो कि पड़ोसी देशों में धार्मिक उत्पीड़न के वजह से भारत आए थे। सरकार ने तर्क देते हुए कहा है कि यह धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव के पीड़ितों केो नागरिकता देने वाला कानून है।
70 सालों की स्थिति-
सरकार का कहना है कि 70 सालों की स्थिति को आधार बनाकर ही कानून बनाया गया है। जिसमें उन देशों के गैर-मुसलमानों को नागरिकता देने का प्रावधान है, जो कि देश धर्म के आधार पर पिड़ित हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान मुस्लिम देश है और इसी वजह से गैर-मुसलमानों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जा जाता है। इसके कारण ही वह भारत आ गए थे। जिन्हें किसी नए नियमों के तहत नागरिकता दी जाएगी। लेकिन जो मुस्लिम हैं उनके साथ मुस्लिम देशों में धर्म के नाम पर प्रताड़ना कैसे हो सकती है, क्योंकि वह पहले से ही उस धर्म के हैं।
कानून पर नोटिफिकेशन जारी-
इस कानून के पारित होने में लगभग 4 साल का समय लगा। अब इस कानून के तहत बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर बाहर गए, गैर मुसलमान को नागरिकता मिलेगी। जिन्हे नागरिकता दी जाएगी उनमें जैन, बौद्ध, सिख पारसी और हिंदू शामिल हैं। भारतीय नागरिकता उन विदेशी गैर मुसलमानों को दी जाएगी जो की 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आए थे।
ये भी पढ़ें- कौन हैं नायब सिंह सैनी? जो मनोहर लाल खट्टर के बाद बनेंगे हरियाणा के सीएम
11 साल की बजाय 6 साल-
लेकिन नागरिकता संशोधन कानून इन तीन देशों के गैर मुसलमानों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही भारत में नागरिकता दे दी जाएगी। बाकी दूसरे देश के लोगों को 11 साल का समय भारत में गुजारना होगा। भले ही वह फिर किसी भी धर्म के हों, गैर-मुस्लिम विदेशी नागरिकों को नागरिकता देने की प्रक्रिया ऑनलाइन होगी और इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया गया है। इस पोर्टल पर नागरिकता पाने वाले शख्स को जरूरी जानकारी साझा करनी होगी। अब आप सोच रहे होंगे कि जब सिटीजनशिप एकेडमी अमेंडमेंट एक्ट दिसंबर 2019 में ही पास किया गया था। लेकिन कोरोना और इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के चलते इसे लागू करने में समय लग गया।
ये भी पढ़ें- CAA के तहत देश के हर जिले में बनेगी कमेटी, नागरिकता को लेकर करेगी ये बड़े फैसले