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Dastak India > Home > हरियाणा > Haryana में बीजेपी की नई रणनीति, जाटों को दरकिनार कर चुनाव जीत पाएगी पार्टी?
हरियाणा

Haryana में बीजेपी की नई रणनीति, जाटों को दरकिनार कर चुनाव जीत पाएगी पार्टी?

Dastak Web Team
Last updated: July 20, 2024 10:41 am
Dastak Web Team
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Haryana
Photo Source - Google
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Haryana: भारतीय जनता पार्टी को हरियाणा लोकसभा चुनाव में आधी सीटों पर हार मिली और अब हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाने के लिए बीजेपी ने अपनी कमर कस ली है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव इसी साल होने वाले हैं, शायद यही कारण है कि अमित शाह राज्य के दो दौरे कर चुके हैं। इन दौरे में उन्होंने राज्य के पिछड़े समुदाय के लिए तमाम घोषणाएं भी की है। 29 जून की पंचकूला यात्रा के दौरान शाह ने यह घोषणा की थी कि नवनियुक्त मुख्यमंत्री नायब सैनी, जो कि ओबीसी समुदाय से आते हैं, उनके ही नेतृत्व में हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा।

Contents
Haryana में जाटों को दरकिनार-Haryana में पार्टी का दूसरा गेम-बीजेपी की रणनीति-सत्ता हासिल करने का लक्ष्य-राजनीतिक रूप से फायदेमंद-क्या जाटों के बिना बीजेपी बना पाएगी सरकार?

Haryana में जाटों को दरकिनार-

यानी कि अगर बीजेपी हरियाणा विधानसभा चुनाव जीत जाती है, तो प्रदेश के सीएम नायब सैनी ही रहेंगे। वहीं मंगलवार को एक बार फिर से हरियाणा पहुंचे गृहमंत्री अमित शाह ने बड़ी घोषणाएं करके पिछड़े वर्ग के लोगों के दिल जीतने की कोशिश की है। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या जाटों को दरकिनार करके हरियाणा में भाजपा फिर से वापसी कर पाएगी। भारतीय जनता पार्टी ने ब्राह्मण मोहनलाल बड़ौली को हरियाणा बीजेपी का अध्यक्ष बनाकर यह संकेत दे दिया है, कि बीजेपी एंटी जाट सेंटीमेंट पैदा करके हरियाणा का चुनाव जीतना चाहती है।

Haryana में पार्टी का दूसरा गेम-

दरअसल बात यह है कि राजनीतिक प्रेषकों को उम्मीद थी कि भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से बनाया है, तो प्रदेश अध्यक्ष जरूर किसी जाट को नियुक्त किया जाएगा। लेकिन बीजेपी ने ऐसा नहीं किया। 8 से 10% ब्राह्मणों को, 22 से 25% जाट मतदाताओं से ज्यादा भान देने का मतलब था कि पार्टी दूसरा गेम खेल रही है। यही नहीं केंद्र में बनी नई सरकार में भी जाटों का ध्यान नहीं रखा गया। मंत्रिमंडल में भी हरियाणा सहित जिन तीन लोगों को मंत्री बनाया गया है, उनमें एक भा जाट शामिल नहीं है, जैसे कृष्ण पाल सिंह गुर्जर हैं, मनोहर लाल खट्टर पंजाबी और राव इंद्रजीत अहीर हैं। जबकि इसके पहले हमेशा जाटों को प्रतिनिधित्व दिया जाता था। लेकिन किसान आंदोलन और महिला पहलवानों के आंदोलन की वजह से जाट समुदाय और भाजपा के बीच मामला बदल चुका है।

बीजेपी की रणनीति-

जिसका नतीजा यह रहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान बहुत सी खबरें आई थीं, कि जाट बहुल गांव में बीजेपी नेताओं को घुसने नहीं दिया गया। जाहिर तौर पर ऐसे समय में उम्मीद की जा रही थी कि सरकार जाटों को मनाने के लिए उनका विशेष ध्यान रखेगी। लेकिन बीजेपी ने ऐसा नहीं किया, इसके ठीक उल्टा कर दिया। विशेषज्ञों का कहना है कि बीजेपी की रणनीति है कि हरियाणा में जाटों को छोड़कर सबको इकट्ठा कर लिया जाए। Haryana में जाटों से सभी जातियां प्रतिस्पर्धा रखती हैं। ब्राह्मण, पिछड़ा वर्ग, पंजाबी और बनिया को मिलाकर बीजेपी हरियाणा में तीसरी बार सत्ता में आने का सपना देख रही है।

सत्ता हासिल करने का लक्ष्य-

अंग्रेजी समाचार वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हरियाणा में लगभग 30% आबादी ओबीसी समुदाय की है, जिसके बाद दूसरे नंबर पर लगभग 25 प्रतिशत के करीब जाट हैं और लगभग 20% अनुसूचित जाति है। लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने का लक्ष्य रखते हुए भाजपा ओबीसी को रियायते दे रही है और भाजपा नेताओं का मानना है कि जाट वोट आपस में बट जाएंगे। भाजपा ने मार्च में दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी से नाता तोड़ लिया था। भाजपा नेताओं का अनुमान है कि जाट वोट भूपेंद्र हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस और चौटाला के नेतृत्व वाले इंडियन नेशनल लोकदल के बीच विभाजित हो जाएंगे।

ये भी पढ़ें- हरियाणा की जनता सरकार से मांग रही है जवाब: भूपेंद्र सिंह हुड्डा का बीजेपी पर तीखा प्रहार

राजनीतिक रूप से फायदेमंद-

भाजपा नेताओं का यह भी मानना है कि अन्य समुदाय को साधना ज्यादा विवेकपूर्ण रणनीति है। बीजेपी के लिए अन्य समुदायों को एकजुट करना राजनीतिक रूप से फायदेमंद होगा। क्योंकि सरकार बनाने के लिए बीजेपी को सिर्फ 38 से 40% वोट चाहिए। वहीं ब्राह्मण, पंजाबी, ओबीसी और बनिया मिलाकर ज्यादा ही हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि हरियाणा में जाटों की आबादी 25% के करीब है और इसके साथ ही राजनीतिक रूप से जागरूक और दबंग होने के चलते वह अन्य जातियों पर भारी पड़ते हैं।

क्या जाटों के बिना बीजेपी बना पाएगी सरकार?

इसीलिए ऐसा कहा जा रहा है कि Haryana में जाटों को साधकर ही कोई पार्टी सरकार नहीं बना सकती है। इसके साथ ही आंकड़े कहते हैं कि प्रदेश में 90 विधानसभा सीटों में से 40 पर जाट वोटर्स प्रभावी हैं। जाट किस कदर प्रवेश की राजनीति पर हावी है इसकी एक मिसाल यह है कि 33 साल प्रदेश की कुर्सी जाटों के हाथ में ही रही है। बीजेपी से जाटों की नाराजगी की एक वजह यह भी रही है कि पार्टी ने प्रदेश में गैर जाट सीएम बनाया है। इसके बावजूद कुछ जाट बीजेपी के साथ हमेशा रहे हैं। इसका कारण बीजेपी की अलग नीति और विकासवादी सोच को माना जाता है।

ये भी पढ़ें- Haryana के रेवाड़ी में बॉयरल फटने से हुआ बड़ा धमाका, हादसे में 40 से ज्यादा लोग..

TAGGED:assembly electionbjpHARYANAJAATJaat Samuday
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