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Dastak India > Home > दुनिया > NASA के इस मिशन के चलते मंगल ग्रह पर खत्म हुआ जीवन? सालों बाद हुआ बड़ा खुलासा
दुनिया

NASA के इस मिशन के चलते मंगल ग्रह पर खत्म हुआ जीवन? सालों बाद हुआ बड़ा खुलासा

Dastak Web Team
Last updated: November 23, 2024 8:14 am
Dastak Web Team
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NASA Mission on Mars
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Source - Google)
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NASA Mission on Mars: दुनियाभर के वैज्ञानिक सालों से इस सवाल का जवाब खोजने में जुटे हुए हैं, कि क्या पृथ्वी के अलावा भी किसी और ग्रह पर जीवन मौजूद है। जलवायु परिवर्तन की वजह से आपदाओं से घिरी धरती को छोड़कर वैज्ञानिक अन्य ग्रहों पर जीवन की तलाश कर रहे हैं। इस सब बीच एक बायोलॉजिस्ट ने एक बड़ा खुलासा किया है, जर्मनी के बर्लिन में मौजूद टोक्नीक यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट डिर्क शुल्ज-माकुच ने पांच दशक पहले भेजे गए नासा के एक मिशन को लेकर यह बड़ा दावा किया है। उन्होंने यह आशंका जताई है, कि 70 के दशक में मंगल ग्रह पर भेजे गए, वाइकिंग मिशन के दौरान नासा ने अनजाने में वहां पर जीवन की संभावनाओं को खत्म कर दिया था।

Contents
मंगल की सतह पर उतरने वाला पहला स्पेसक्राफ्ट (NASA Mission on Mars)-नासा के मिशन से खत्म हुआ मंगल पर जीवन?मंगल ग्रह का वातावरण (NASA Mission on Mars)-हाइग्रोस्कोपिक सॉल्ट टारगेट-नए मिशन की ज़रुरत-

मंगल की सतह पर उतरने वाला पहला स्पेसक्राफ्ट (NASA Mission on Mars)-

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने साल 1975 में मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश के लिए वाइकिंग मिशन लॉन्च किया था। नासा ने दो स्पेसक्राफ्ट मार्स की सतह पर भेजे, जिससे जीवन की संभावनाओं की जांच की जा सके। नासा का वाइकिंग मंगल की सतह पर उतरने वाला पहला स्पेसक्राफ्ट था। 19 जून 1976 को यह स्पेसक्राफ्ट मंगल की कक्षा में पहुंचा और करीब एक महीने तक उसका चक्कर काटने के बाद उसकी सतह पर लैंड किया। इसके कुछ ही महीने बाद नासा ने वाइकिंग-2 तो मिशन लॉन्च किया। जिसने मंगल ग्रह की सतह की हाई रेजोल्यूशन तस्वीर धरती पर भेजी और इन तस्वीरों ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। (NASA Mission on Mars)

नासा के मिशन से खत्म हुआ मंगल पर जीवन?

दरअसल यह बात है, कि वाइकिंग मिशन के दौरान नासा ने मंगल ग्रह की मिट्टी को पानी और पोषक तत्वों के साथ मिलकर परीक्षण किया। नासा ने धरती पर जीवन के लिए जरूरी चीजों की कल्पना करते हुए, इन तत्वों को मिलाकर जांच की, जिसमें शुरुआती परिणामों ने मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं की ओर इशारा किया। हालांकि दशकों बाद ज्यादातर रिसर्चस का मानना है, कि उस परीक्षण के परिणाम गलत थे। शुल्ज-माकुच ने अब एक रेडिकल थ्योरी पेश की, जिसके मुताबिक, वाइकिंग लैंडर ने शायद जीवन की खोज मंगल ग्रह पर कर ली थी। लेकिन इसकी मिट्टी को पानी के साथ मिलाकर अनजाने में जीवन की संभावनाओं को खत्म कर दिया।

मंगल ग्रह का वातावरण (NASA Mission on Mars)-

एक टिप्पणी में शुल्ज-माकुच ने नेचर के लिए लिखा, कि संभावित जीवन वातावरण से नमी खींचने के लिए मंगल ग्रह पर ज्यादा शुष्क परिस्थितियों में सॉल्ट पर निर्भर होकर जीवित रह सकता है। चिली में मौजूद अटाकामा रेगिस्तान जैसे चरम वातावरण में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों के समान, उन्होंने व्याख्या करते हुए बताया, कि शायद गलती से ज्यादा पानी मिलाकर नासा के वाइकिंग ने मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना को खत्म कर दिया था। यह परिकल्पना लंबे समय से चली आ रही, नासा की उस रणनीति को चुनौती देती है, जिसमें जीवन की संभावना के लिए किसी अन्य ग्रह पर पानी की तलाश को जरूरी माना जाता है।

हाइग्रोस्कोपिक सॉल्ट टारगेट-

शुल्ज-माकुच का कहना है, कि पानी के रूप को प्राथमिकता देने के बजाय भविष्य के मिशन को हाइग्रोस्कोपिक सॉल्ट को टारगेट करना चाहिए। हाइग्रोस्कोपिक सॉल्ट वह तत्व है, जो वातावरण की नमी को सोख लेता है। मंगल ग्रह पर पाया जाने वाला मुख्य सॉल्ट सोडियम क्लोराइड संभावित तौर पर माइक्रोबियल जीवन को बनाए रख सकता है। जैसा की कुछ बैक्टीरिया ब्राइन सॉल्यूशन में धरती पर पनपते हैं, शोधकर्ताओं की मानें, तो वाइकिंग के मंगल ग्रह के सूक्ष्म जीवों पर संभावित प्रयोग प्रभाव की तुलना अटाकामा रेगिस्तान में हुई घटना से की है। जहां पर 70 से 80% जीवाणु को तेज़ बारिश ने मार डाला, क्योंकि वह जीव पानी के बहाव के अनुकूल नहीं जा पाए।

ये भी पढ़ें- क्या है Kissing Disease? जिसके चलते एक स्टूडेंट को होना पड़ा अस्पताल में भर्ती, जानें कारण और लक्षण

नए मिशन की ज़रुरत-

शुल्ज-माकुच ने वाइकिंग मिशन के करीब 50 साल बाद मंगल ग्रह पर जीवन का पता लगाने के लिए नए सिरे से प्रयास करने की अपील की है। उन्होंने ग्रह के चरम वातावरण के बारे में नए प्रयासों और जानकारी को शामिल करने की अपील की। उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा, कि यह एक और जीवन का पता लगाने वाले मिशन का समय है। हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया, कि उनके सिद्धांत अभी भी अटकलों पर आधारित है। इस सबूत को विश्वसनीय बनाने के लिए जीवन का पता लगाने के कई स्वतंत्र तरीकों को इस्तेमाल करने की जरूरत है।

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