World War 3: लगातार पूरी दुनिया में तनाव बढ़ता जा रहा है, परमाणु हमले का खतरा पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह भविष्यवाणी की गई है, कि परमाणु युद्ध न सिर्फ गर्मी, विस्फोट और विकिरण मृत्यु का कारण बनेंगे। बल्कि खाद्य आपूर्ति को भी गंभीर रूप से बाधित करेंगे। महासागरों, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वायुमंडल में परिवर्तन की वजह से दुनिया भर में 6.7 बिलियन लोग भुखमरी का शिकार होंगे। सिमुलेशन, जो परमाणु युद्ध के बाद के वातावरण, कृषि के परिणामों पर विचार करता है, ने देशों की पहचान की है, जो बड़े पैमाने पर भुखमरी से बच सकते हैं।
वैश्विक संकट के समय भी बेहतर जगह (World War 3)-
उसमें अर्जेंटीना, उरुग्वे, ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया, आइसलैंड और ओमान जैसे देश शामिल हैं। युद्ध के बाद के वातावरण में खाद्य उपभोग को बनाए रखने की उनकी क्षमता की वजह से अपनी आबादी को बनाए रखने की उम्मीद है। अध्ययन के मुताबिक, इन क्षेत्रों के बारे में बताया गया है, कि खाद्य उपभोग उस देश में वर्तमान शारीरिक गतिविधि का समर्थन हो सकता है। वैश्विक संकट के समय भी यह जगह बेहतर हो सकती हैं। इसके अलावा दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले क्षेत्रों में इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा। सिमुलेशन से यह पता चलता है, कि कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और यूरोप के ज्यादातर हिस्से विनाशकारी काल का सामना करेंगे।
भूखमरी के शिकार हो सकते हैं ये देश (World War 3)-
जिसमें उनकी अधिकतर आबादी भूख से मर सकती है। उदाहरण के लिए अमेरिका में परमाणु युद्ध के बाद 98% आबादी भूख से मर सकती हैं। हालांकि कुछ ऐसी जगह भी हैं, जहां पर लोगों के पूरी तरह से तो भुखमरी का सामना नहीं करना होगा। लेकिन बॉडी में कैलोरी की भारी कमी की वजह है, इन क्षेत्रों में लोगों का वजन कम होने की संभावना है। क्योंकि पर्याप्त भोजन ना मिलने की वजह से न सिर्फ आपके शरीर को प्रभावित करेंगी, बल्कि आपकी ऊर्जा पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। वही अध्ययन में तीन संभावित रूपरेखाएं (Possible Outlines) बताई गई हैं, जिसमें परमाणु युद्ध के बाद दुनिया की खाद्य प्रणालियों पर क्या असर होगा।
अनाज का आधा हिस्सा (World War 3)-
अनाज का आधा हिस्सा लोगों को खिलाने के लिए जाएगा, जबकि बाकी आधा हिस्सा जीवित पशुओं (गाय, भैंस आदि) के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पशु मामले में मॉडल सुझाव देता है, कि खाद्य संसाधन सीमित होंगे और दूसरे साल में सिर्फ बुनियादी जीविका ही बनाई रखी जाएगी। यह साल 2010 की जनसंख्या के आंकड़ों पर आधारित है और कोई इंटरनेशनल बिजनेस नहीं मानते हैं। जिससे कई देशों के लिए भोजन तक पहुंच, अस्तित्व की संभावना और भी सीमित हो जाएंगी।
ऐसे देश जो हो सकते हैं सुरक्षित स्थान-
अगर परमाणु युद्ध हुआ तो दुनिया के तमाम देश उससे अछूते नहीं रहेंगे। लेकिन जिन पर इसका असर सबसे कम पड़ेगा, उस लिस्ट में सबसे पहले अंटार्कटिका आता है। साल 1961 में एक संधि के तहत दुनिया के 12 देशों ने अंटार्कटिका को वैज्ञानिक रिसर्च के लिए एक जगह मान लिया था। इसी संधि की वजह से इस जगह पर किसी भी तरह की सैनिक गतिविधियां नहीं हो सकती, यानी युद्ध के वक्त भी कोई देश यहां पर हमला नहीं कर सकता है। इस एग्रीमेंट पर साइन करने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, बेल्जियम, फ्रांस, चिली, जापान, साउथ अफ्रीका, सोवियत संघ, यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम अमेरिका शामिल थे। उसके बाद जर्मनी, उत्तर कोरिया, पोलैंड, ब्राजील और चीन ने भी बाद में इस प्रस्ताव को मान लिया था।
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आइसलैंड, न्यूज़ीलैं और स्विट्जरलैंड-
आइसलैंड जो कि अपनी शांति के लिए जाना जाता है, किसी भी संघर्ष क्षेत्र से बहुत दूर है। हालांकि कुछ जगहों पर परमाणु हमलों का प्रभाव पहुंच सकता है। वहीं न्यूज़ीलैंड अपनी विदेशी नीति और पहाड़ी इलाकों की वजह से न्यूज़ीलैंड सैन्य खतरों से प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता है। इसका कम जोखिम वाला फोर्म वैश्व युद्ध के समय संभावित रुप से सुरक्षित आश्रय हो सकता है। वहीं अपनी लॉन्ग टर्म नेचुरेलिटि और व्यापक (Vast) परमाणु आश्रयों के लिए जाना जाने वाले स्विट्जरलैंड का भूभाग और गुटनिरपेक्षता इस परमाणु युद्ध की स्थिति में इसे एक सुरक्षित विकल्प बनाते हैं।
इंडोनेशिया, ग्रीनलैंड, दक्षिण अमेरिका और तुवालु-
वहीं इंडोनेशिया, ग्रीनलैंड और तुवालु ऐसे भौगोलिक देश हैं, जो दूरस्थ और राजनीतिक रूप से तटस्थ (Neutral) हैं, जो वैश्विक संघर्ष के दौरान उनके संभावित लक्ष्यों को कम बनाता है। विशेष रूप से तुवालू में सीमित बुनियादी ढांचा है, जो इस सैन्य कार्यवाही के लिए एक और संभावित लक्ष्य बनाते हैं। वहीं दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना, उरुग्वे और चिली जैसे देशों में प्रचुर मात्रा में फसलों और अपेक्षाकृत बुनियादी ढांचे की वजह से इन जगहों पर परमाणु युद्ध के बाद की स्थिति से बचने की ज्यादा संभावना है।
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