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Dastak India > Home > दुनिया > क्या है ज़मात-ए-इस्लामी? बांग्लादेश में क्यों खतरे में है हिंदुओं की जान? कब हुई इसकी शुरुआत, सब जानें
दुनिया

क्या है ज़मात-ए-इस्लामी? बांग्लादेश में क्यों खतरे में है हिंदुओं की जान? कब हुई इसकी शुरुआत, सब जानें

Dastak Web Team
Last updated: December 7, 2024 9:22 pm
Dastak Web Team
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Bangladesh
Photo Source - Google
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Bangladesh: इस समय बांग्लादेश में एक करोड़ 31 लाख हिंदू मौजूद हैं, जिनकी जान खतरे में है। ऐसा कोई दिन नहीं गुजरता जब हिंदुओं पर बांग्लादेशी हमला नहीं करते। कहीं मंदिर में तोड़फोड़ हो रही है, तो कभी मूर्तियां तोड़ी जा रही है और विरोध करने वाले हिंदुओं का भी कत्ल हो जाता है। बहुत से वीडियो तो ऐसे हैं, जिन्हें देख आप यकीन नहीं सकते। हर अगला वीडियो हिंदुओं के साथ क्रूरता के लिए नए हथकंडे अपनाते हुए नज़र आ रहा है। धमकी और हमले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। बांग्लादेश में 10 में से 9 हमले के पीछे एक ही नाम आता है। जमात ए इस्लामी, आज बहुत से सवाल बांग्लादेश में दिलचस्पी लेने वाले लोगों के मन में उठ रहे हैं। जैसे की जमात इस्लामी बनाने के पीछे का मकसद क्या है? यह हिंदुओं से इतना क्यों चिढ़ती है? इसे बांग्लादेश में क्यों और किसने लॉन्च किया और इसका आगे का प्लान क्या है, आईए इसके बारे में जानते हैं-

Contents
ज़मात-ए-इस्लाम पूरी बड़ी हैडलाइन कब बना?ज़मात-ए-इस्लामी की स्थापना कब हुई?संगठन दो अलग-अलग हिस्सों में बंटा-मोहम्मद यूनुस क्यों हैं शांत?ज़मात-ए-इस्लामी का टारगेट क्या?मकसद-

ज़मात-ए-इस्लाम पूरी बड़ी हैडलाइन कब बना?

आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि शेख हसीना के हेलीकॉप्टर ने 5 अगस्त को जैसे ही ढाका से दिल्ली के लिए उड़ान भरी। ज़मात-ए-इस्लाम पूरी दुनिया की सबसे बड़ी हैडलाइन बन गया। अंग्रेजी, बांग्ला, हिंदी, उर्दू हर भाषा में ज़मात की हेडलाइन छपी। ढाका की सड़कों पर हिंदुओं का खून बहने लगा। ज़मात-ए-इस्लामी सोशल मीडिया पर टॉप ट्रेंड करने लगा। शेख हसीना के जाते ही कट्टरपंथी और फौजी हाथों में हथियार लेकर हिंदुओं को मिटाने के लिए निकल पड़े।

ज़मात-ए-इस्लामी की स्थापना कब हुई?

ज़मात-ए-इस्लामी के मूल संगठन की स्थापना भारत की आजादी से पहले साल 1941 के अगस्त महीने में की गई थी। इस्लामी दार्शनिक अबुल आला मौदूदी ने लाहौर के इस्लामिया पार्क में इसकी शुरुआत की और इसका शुरुआती मकसद इस्लाम का प्रचार करना था। संगठन का मकसद इस्लाम को पूरी दुनिया में फैलाना और इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना था। 1941 से लेकर 1946 तक पूरे भारत में ज़मात-ए-इस्लामी का प्रचार करता रहा। यह संगठन पूरी तरह अखंड भारत के लिए समर्पित रहा। ज़मात-ए-इस्लामी पहले वह मुस्लिम संगठन था, जिसने अलग पाकिस्तान और जिसने भारत के विभाजन का विरोध किया। इसने मुस्लिम लीग को 1946 के चुनाव में सपोर्ट नहीं किया था।

संगठन दो अलग-अलग हिस्सों में बंटा-

फिर भारत से अलग होकर पाकिस्तान अलग देश बन गया और मौजूदा बांग्लादेश उस वक्त पूर्वी पाकिस्तान कहलाया। यही से संगठन दो अलग-अलग हिस्सों में बंटा। भारत में ज़मात-ए-इस्लामी हिंदू संगठन रहा। पाकिस्तान में ज़मात-ए-इस्लामी पाकिस्तानी बन गया। भारत में पूरी तरह से ज़मात-ए-इस्लामी धर्म के प्रचार में जुटा रहा था। वहीं पाकिस्तान में यह पूरी तरह से कट्टरपंत्तियों के कब्जे में रहा। वहीं पश्चिमी पाकिस्तान के सदस्य हिंदू समाज जैसे संगठनों के प्रेशर में या तो कन्वर्ट हो गए या फिर देश छोड़कर चले गए। लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में वह हिंदुओं की अच्छी खासी आबादी को पूरी तरह से कंट्रोल नहीं कर पाया और इसी वजह से आज तक कट्टरपंत्ति के मन में यह कसक रह गई है।

मोहम्मद यूनुस क्यों हैं शांत?

बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस को शांति के लिए नोबेल प्राइज मिला था। उनके देश में उनकी नाक के नीचे ज़मात-ए-इस्लामी हिंदुओं की नस्ल को मिटाने पर आमादा है। वहीं हर हिंदू डरा हुआ है और ज़मात-ए-इस्लामी के पास ऐसी क्या पावर है, जिससे मोहम्मद यूसुफ भी चुप हो चुके हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें, की ज़मात लंबे समय से बांग्लादेश में बंद था और शेख हसीना के जाते ही यह तुरंत इस पर से प्रतिबंध हट गया। हिंदुओं पर हमले ज्यादा भीषण हो गए और तेज होने लगे। आज के बांग्लादेश में ज़मात की पावर का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके खिलाफ बोलना भी मौत को दावत देने जैसा हो चुका है। अब समस्या यह है, कि जिस बांग्लादेश को पाकिस्तान के चंगुल से भारत ने आजाद करवाया था। आज इस पर अपना कंट्रोल लेने वाले ज़मात के जिहादियों को पाकिस्तान, उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकी संगठनों का पूरा सपोर्ट मिल रहा है। वहीं पाकिस्तान जिहादियों के लिए पैसे भेजता है।

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ज़मात-ए-इस्लामी का टारगेट क्या?

वहीं ज़मात-ए-इस्लामी का टारगेट क्या है। इसकी जानकारी 1919 में पूर्व पाकिस्तान यानी कि आज के बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 22 फीसदी थी, जो कि बांग्लादेश की आजादी यानी 1971 तक घटकर 13 फ़ीसदी तक रह गई। 1981 में यह नंबर 12.1 फीसदी और 2011 तक आते-आते यह 8 फीसदी ही रह गया। ज़मात का टारगेट नंबर को जीरो पर पहुंचना है। ताकि बांग्लादेश को इस्लामी मुल्क बना सके। इसलिए ज़मात की टोली हिंदू के सबसे बड़े नरसंहार की स्क्रिप्ट पर काम कर रही है और छोटे-छोटे हमले की जगह हिंदुओं पर बड़े-बड़े अटैक कर रही है। ज़मात के लोग इसके लिए अलग-अलग वजह बताते हैं, जैसे कि इस समय इस्कॉन निश़ाने पर आया हुआ है।

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मकसद-

ज़मात ने बांग्लादेश के नक्शे में भारत के पश्चिम बंगाल, बिहार के कई जिलों, झारखंड के बड़े हिस्से, असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर के हिस्सों को शामिल किया है। जिहादियों ने अपने नक्शे में नेपाल के भी कई हिस्से को जोड़ा है। ज़मात का टारगेट पहले बांग्लादेश में इस्लामी शासन लागू करना है। उसके बाद बांग्लादेश वाली साजिश पर आगे बढ़ना है और फाइल स्टेप में पाकिस्तान के साथ मिल जाना है। जमात की यह सारी कवायत पाकिस्तान के इशारे पर हो रही है और अब देखना यह है, कि यह मामला कब और कैसे अंजाम तक पहुंचता है।

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