NIT Rourkela Research: भारत के जल संकट से जूझते शहरों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है। एनआईटी राउरकेला के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है, जो औद्योगिक कचरे से निकलने वाले जहरीले रसायनों को प्रभावी ढंग से साफ कर सकती है। यह खोज विशेष रूप से टेक्सटाइल और रासायनिक उद्योगों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
NIT Rourkela Research हाइब्रिड सिस्टम-
प्रोफेसर सुजीत सेन के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम ने एक हाइब्रिड सिस्टम विकसित किया है, जो बिस्मार्क ब्राउन आर जैसे खतरनाक डाई को मात्र 90 मिनट में 95.4% तक साफ कर सकता है। साथ ही, यह केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD) को 94% तक कम कर देता है। यह प्रणाली सामान्य प्रकाश में भी प्रभावी ढंग से काम करती है, जो इसे व्यावहारिक दृष्टि से अत्यंत उपयोगी बनाता है।
NIT Rourkela Research आर्थिक लाभ-
परंपरागत ऑक्सीडेशन विधियों की तुलना में यह नई तकनीक कम खर्चीली है। यह मौजूदा जल शोधन प्रणालियों में आसानी से एकीकृत की जा सकती है, जिससे उनकी क्षमता बढ़ जाएगी।
भारत की जल चुनौतियां-
एक विकासशील देश के रूप में भारत गंभीर जल प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है। यमुना और गंगा जैसी प्रमुख नदियां औद्योगिक कचरे से बुरी तरह प्रभावित हैं। यह समस्या न केवल मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है, बल्कि जलीय जीवों के लिए भी खतरा बन गई है।

यह तकनीक विभिन्न उद्योगों में अपनाई जा सकती है जैसे-
1. कपड़ा उद्योग
2. स्टील निर्माण
3. पेट्रोकेमिकल्स
4. फार्मास्यूटिकल्स
5. अस्पताल का कचरा
शोध टीम अब इस तकनीक को बड़े पैमाने पर विकसित करने की दिशा में काम कर रही है। उनका उद्देश्य है पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ औद्योगिक अपशिष्ट जल शोधन में सुधार लाना।
तकनीकी विशेषताएं-
बिस्मार्क ब्राउन आर जैसे डाई इतने सूक्ष्म होते हैं कि वे माइक्रोफिल्ट्रेशन मेम्ब्रेन से भी निकल जाते हैं। ये न केवल पानी को रंगीन बना देते हैं बल्कि कैंसरकारी भी हो सकते हैं। नई तकनीक इन चुनौतियों से निपटने में सक्षम है।
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वैश्विक प्रभाव-
यह खोज न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है। जल प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है और इस तरह की नवीन तकनीकें इससे निपटने में मददगार साबित हो सकती हैं।
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