Citizenship Amendment Act: भारतीय लोकसभा चुनाव के लिए अब एक से दो महीने का समय बचा हुआ है और गृह मंत्रालय में चुनाव से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम की अधिसूचना जारी हो सकता है। इसके साथ ही देश CAA का कानून लागू हो जाएगा। कानून लागू होने के बाद भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आए गैर मुस्लिम सारनार्थीयों को नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस कानून को 4 साल पहले ही संसद के दोनों सदनों से मंजूरी मिली थी। यहां तक की इस कानून पर राष्ट्रपति की मोहर भी लग चुकी है। लेकिन उस समय इसके खिलाफ पूरे देश में हुए विरोध प्रदर्शन की वजह से यह आज तक लागू नहीं हो पाए। जानकारी के मुताबिक वर्तमान में कानून को लागू करने की पूरी तैयारी हो चुकी है। अब सिर्फ नोटिफिकेशन जारी होने का इंतजार किया जा रहा है।
नागरिकता संशोधन अधिनियम-
दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी CAA को भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था। यह 1955 के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करता है। यह अधिनियम 31 दिसंबर 2014 तक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए छह धर्म के शरणार्थियों सिख, हिंदू, बौद्ध, और पारसी को भारतीय नागरिकता देने की बात कहता है। आसान भाषा में समझे तो इस कानून के तहत भारत अपने पड़ोसी और मुस्लिम बहुमूल्य देश से आए उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी गई, जो साल 2014 तक किसी न किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आ कर बस गए।
CAA के मुताबिक इन देशों से भारत आए लोगों को नागरिकता लेने के लिए किसी तरह के कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी। इसके अलावा कानून इस के तहत इन 6 अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिलने से ही मौलिक अधिकार भी मिल जाएंगे। हालांकि इससे मुसलमान को बाहर रखा गया है। भारतीय नागरिकता कानून 1955 में अब तक छह बार संशोधन किया जा चुका हैय़ सबसे पहले 1986 फिर 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 में। पहले किसी को भी भारतीय नागरिकता लेने के लिए 11 साल तक भारत में रहना जरूरी था। नए संशोधन कानून में यह अवधि घटकर 6 साल हो गई है।
मोदी सरकार द्वारा गैर मुसलमान को नागरिकता कैसे मिलेगी। भारतीयों पर इसका क्या असर होगा आईए जानते हैं-
यह बिल जब संसद से पारित हुआ उसेृ समय भारत के अलग-अलग हिस्सों में मुसलमानों ने इसका कड़ा विरोध किया था। लेकिन अमिल शाह का कहना है कि यह किसी की नागरिकता छीनने का कानून नहीं है। उन्होंने कहा की नागरिकता संशोधन अधिनियम ऐसे लोगों को नागरिकता देने के लिए बनाया गया है। जिन्हें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में रहते हुए धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा हो। वह इससे बचने के लिए भारत पहुंचे थे। आज से 4 साल पहले जब का संसद में यह पारित हुआ था। उस समय ही देश के बहुत हिस्सों में इसका बड़ा विरोध हुआ।
विरोध करने की मुख्य वजह संशोधन अधिनियम में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं किया जाना था। कुछ राजनीतिक पार्टियों ने इसी का आधार बनाकर केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। विपक्षी पार्टी के मुताबिक, अधिनियम में संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हो रहा है, जो सामानता के अधिकार की बात करता है। 20 नवंबर 2019 को केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने सदन में बताया कि उनकी सरकार नागरिकता से जुड़े दो अलग-अलग पहलुओं को लागू करने जा रही है। एक एनआरसी और दूसरा राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्ट्रेशन के बारे के बारे में तो हमने जान ही लिया है।
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एनआरसी क्या है आईए जानते हैं-
दरअसल एनआरसी नागरिक का एक राष्ट्रीय रजिस्ट्रेशन है, जिसका उद्देश्य भारत से अवैध लोगों की पहचान कर उन्हें बाहर निकलना है। फिर चाहे वह किसी भी धर्म के ही क्यों ना हो। वर्तमान में एनआरसी सिर्फ असम में लागू है। अब क्योंकि सदन में एक साथ सी एनआरसी बात की गई। इसलिए अक्सर इन दोनों कानून के एक दूसरे से जोड़कर देखा जा रहा है। आलोचकों का तर्क है कि अगर मुसलमान अपने कागज नहीं दिखा पाएंगे ,तो ऐसे में हिंदू तो बच जाएगा, लेकिन मुसलमान की नागरिकता छीनी जा सकती है। इस कारण कई लोगों के मन में डर पैदा हो गया। भारत की न्यायपालिका में इसे कई कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
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