दिल्ली-एनसीआर समेत हरियाणा, यूपी और पंजाब जैसे कई राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाना एक गंभीर मुद्दा बन चुका है। वहीं, इसी समस्या से निपटने के लिए इन सभी राज्यों की सरकार अलग-अलग हथकंडे अपना रही है। लेकिन कुछ साल पहले ही इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट पूसा के वैज्ञानिकों ने पराली को नष्ट करने का सबसे आसान और सस्ता तरीका खोज निकाला था। इसके बावजूद भी केंद्र सरकार किसानों को पराली नष्ट करने के लिए पेड्डी स्ट्रा चोपर मल्चर जैसी मशीनों को सब्सिडी पर उपलब्ध करवा रही है। फिर भी ये मशीन काफी महंगी पड़ रही है।
‘वेस्ट डीकंपोजर’ जैसे सस्ते और आसान फ़ॉर्मूले की मदद से बड़ी ही आसानी से पराली को नष्ट किया जा सकता है। इतना ही नहीं, पराली को गलाकर खाद बना देने वाले इन कैप्सूलस का दाम इन मशीनों से बहुत ही अधिक कम है। इन कैप्सूल में कुछ फंगस होते हैं, जो एक तरफ पराली को सड़ाते हैं तो दूसरी ओर खेत को उपजाऊ बनाते हैं।
वहीं, इस ‘वेस्ट डीकंपोजर’ को किसी प्राइवेट कंपनी नहीं बल्कि खुद सरकार द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। फिर भी सरकार किसानों को इस तरह के सस्ते जुगाड़ देने की बजाय अलग-अलग पैतरे आजमा रही है। सबसे बड़ी बात ये है कि इसके इस्तेमाल से किसी भी तरह का कोई प्रदूषण नहीं फैलता।
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इस कंपोजर के होने के बाद अब सवाल उठता है कि इस दवा की खोज होने के बाद भी सरकार किसानों को पराली नष्ट करने के लिए सबसे सस्ता और अच्छा साधन क्यों उपलब्ध नहीं करवा रही है? सरकार क्यों महंगी-महंगी मशीनों को प्रमोट करने में लगी है? सरकार क्यों इन दवाओं की जानकारी किसानों तक नहीं पंहुचा रही?
इतना ही नहीं, नेशनल सेंटर ऑफ ऑर्गेनिक फार्मिंग की वेबसाइट पर इस वेस्ट डीकोम्पोस्टर को बनाने का तरीका भी बताया हुआ है। इससे होने वाले सभी तरह के फायदों के बारे में भी विस्तार से जानकारी उपलब्ध है। इस दवा से किसी भी तरह का कोई भी नुकसान नहीं होता। इसके बावजूद भी सरकार किसानों को अपने जाल में फंसा कर उन्हें गुमराह करने की कोशिश कर रही है।
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