पीठ का कहना है कि यह मुकदमा कमजोर नहीं होना चाहिए और ना ही इसका अंत सरकारी कर्मचारियों के बरी होने के परिणाम के रूप में होना चाहिए। बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में अवैध लाभ हासिल करने के आरोप में कोई दस्तावेजी सबूत या प्रत्यक्ष मौखिक सबूत ना होने की सूरत में किसी भी सरकारी कर्मचारी को परिस्थिति जनक साक्ष्य के आधार पर भी दोषी ठहराया जा सकता है। एस ए नज़ीर न्यायमूर्ति की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यों की पीठ ने कहा कि जिन्होंने शिकायत दर्ज करवाई उनके साथ-साथ दोषी पक्ष को भी ईमानदार कोशिश करनी चाहिए। जिससे भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों को दोषी ठहराकर उन्हें सजा दी जा सके और शासन – प्रशासन को साफ-सुथरा और भ्रष्टाचार मुक्त बनाया जा सके।
पीठ का कहना है कि सबूतों के अभाव में, अपराध के संबंध में आनुमानिक निष्कर्ष निकाले जाने की इजाज़त है। इस पीठ में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवाई, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति वी राम सुब्रमण्यम भी शामिल थे। उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर मृत्यु या किसी अन्य कारण से शिकायतकर्ता का प्रत्यक्ष सबूत उपलब्ध नहीं है तो भी प्रासंगिक प्रावधानों के तहत सरकारी कर्मचारी को दोषी ठहराया जा सकता है।
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पीठ का कहना है अगर शिकायत करने वाला अपने बयान से मुकर जाता है, सुनवाई के दौरान सबूत पेश करने में असमर्थ होता है या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है। तो किसी अन्य गवाह के दस्तावेज या मौखिक सबूत को स्वीकार कर लाभ की मांग से जुड़े अपराधों को साबित किया जा सकता है या परिस्थिति जनक साक्ष्यों के आधार पर अपराध साबित किया जा सकता है।
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इस सवाल पर विचार करते समय शीर्ष अदालत ने यह आदेश दिया कि अवैध लाभ की मांग के संबंध में प्राथमिक या प्रत्यक्ष सबूतों की कमी होने की सूरत में किसी सरकारी कर्मचारी के अपराध का अनुमानिक आकलन अन्य सबूतों के आधार पर किया जा सकता है।