Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तरकाशी सुरंग हादसे में मजदूरों को फंसे करीब 17 दिन हो चुके हैं, इन 17 दिनों में उन्होंने जिस हालत में समय गुजारा है। वह सबके बस की बात नहीं है। अंदर फंसे मजदूरों को सिर्फ ऑक्सीजन की कमी से ही जंग नहीं लड़नी थी, बल्कि अकेलापन, निराशा और कभी भी मौत से सामना होने का डर भी उनके सामने हर वक्त था। ऐसे में मनोचिकित्सकों लगातार उनके संपर्क में रहकर उन्हें हिम्मत दिला रहे हैं। बचाव कार्य में लगे अधिकारियों के मुताबिक, सुरंग में 2 किलोमीटर अंदर फंसे मजदूरों को एक पतले से पाइप के जरिए माइक भेजा गया। जिससे कि वह बाहरी दुनिया से संपर्क कर सकें।
पहले दिन से ही डाक्टर मौजूद-
सरकार की तरफ से अभियान स्थल पर पहले दिन से ही डाक्टर मौजूद हैं, जो की अंदर फंसे हुए मजदूरों से दिन में दो बार बात करते हैं। मजदूरों को प्रेरित करने में डॉक्टर के साथ मनोचिकित्सक का भी बड़ा रोल रहा है। वह मजदूरों से सुबह 9:00 से 11:00 बजे तक और शाम 5:00 बजे से 8:00 तक संपर्क करते हैं। इसके साथ ही बाहर खड़े मजदूरों के परिवारों से भी उनकी बात कराई जाती है। उन परिजनों के लिए टनल के बाहर कैंप भी लगाया गया है, जिसमें उनके रहने और खाने पीने के इंतजाम हैं।
काउंसलिंग-
काउंसलिंग की वजह से अंदर फंसे मजदूरों को भी अपने बाहर निकलने की उम्मीद बनी रही और वह पॉजिटिव रहे। ऐसे में अंदर फंसे मजदूर अहमद जब भी उनके परिवार वाले फोन के जरिए उनसे संपर्क करते थे, वह यही कहते थे कि घबराओ मत हम ठीक हैं। अहमद भाई से कहते हैं की ड्रिलिंग में रुकावट की वजह से बचाव अभियान में देरी हुई। इसके बावजूद काउंसलिंग की वजह से उनके भाई का मोरल ऊंचा रहा।
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भाई से दिन में दो बार बात-
वह अपने भाई से दिन में दो बार बात करते हैं और यह भी सुनिश्चित करते हैं की अहमद की पत्नी और उनके बच्चे जो कि बिहार के भोजपुरी में है, उनसे बात करें। अहमद के भाई का कहना है कि ने कहा कि हम उन्हें प्रेरित करते रहते हैं हम कभी भी कठिनाइयों और बढ़ाओ के बारे में बात नहीं करते बल्कि उन्हें बताते हैं कि वह जल्दी बाहर आ जाएंगे, कर्मचारी अच्छा रहे कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें लगभग हर आवश्यक वस्तु मिल रही है।
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