इस समय बहुत से लोगों के मन में यह सवाल है कि आखिर 7 और 8 मार्च को ऐसा क्या हो गया कि उसी दिन निर्वाचित आयोग के आयुक्त अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया। इसके पीछे कुछ बहुत गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से अपनी 4 साल की सेवा को अरुण गोयल ने ठुकरा दिया। इन चार सालों के कार्यकाल के दौरान गोयल 2 साल से ज्यादा मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर रहते। जानकारी के मुताबिक, गोयल के कुछ मुद्दों पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त के साथ मतभेद थे। लेकिन यह एक अलग बात है क्योंकि बड़े अधिकारियों के बीच इतने मतभेद तो चलते रहते हैं।
मीटिंग में गोयल गैर हाजिर-
सूत्रों के हवाले से कहा गया कि 6 और 7 मार्च को आयोग में माहौल थोड़ा अलग महसूस किया गया। 8 मार्च को केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला निर्वाचन सदन आए थे। अजय भल्ला ने निर्वाचन आयोग के अधिकतर राज्यों में चुनावी तैयारी की समीक्षा के बाद आम चुनाव के दौरान सुरक्षा बलों की तैनाती और आवाजाही की तैयारियों का जयज़ा लिया। इसका उद्देश्य जम्मू कश्मीर, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र समेत पूरे देश में चुनाव स्वतंत्र, सहज, निर्भय माहौल और निष्पक्ष माहौल में कराया जा सके। सूत्रों की मानें तो उस मीटिंग में गोयल गैर हाजिर थे, सीईओ राजीव कुमार अकेले थे।
15 मार्च तक खाली पद भरने की तैयारी-
उस टीम में गृह सचिव और अन्य अधिकारियों के साथ चर्चा में राजीव कुमार के साथ अन्य निचले पायदान के अलावा और अधिकारी भी मौजूद थे। पहले से चलते आ रहे हल्के-फुल्के मतभेद 6, 7 मार्च की रात को और ज्यादा गहरा गए। जिसकी वजह से कुछ ऐसी बातें निकली कि दूर तक चली गई। अब सरकार निर्वाचन आयोग में खाली हुए आयुक्त के पद 15 मार्च तक भरने में जुड़ी हुई है। अब एक ही निर्वाचन आयुक्त की बहाली में लगी सरकार को अब जल्द से जल्द दो निर्वाचन आयुक्त की बहाली करनी पड़ेगी। सरकार में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, 6-7 अफसरों का पैनल तो पहले से ही तैयार है।
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रफ्तार से काम करने के अलावा कोई रास्ता नहीं-
समाचार वेबसाइट आज तक के मुताबिक, लोक सभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री की ओर से मनोनीत एक मंत्री के चयन समिति संभावित मंगलवार तक इस पर बैठक करेगी। सरकार की पूरी कोशिश है कि दो निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति चुनाव की घोषणा से पहले की जाए। सरकार के पास इस रफ्तार से काम करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। हालांकि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने अरुण गोयल की नियुक्ति इसी रफ्तार से की थी। कोर्ट ने तब कहा था कि ऐसा कौन सा आसमान टूट पड़ा था, कि सरकार बिजली की तेजी से काम करने लगी है। एक दिन में चयन प्रक्रिया पूरी कर ली गई। लेकिन इस बार बात कुछ अलग है और हालात भी।
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